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है दम के साथ इशरत (नजीर अकबराबादी)

हैं दम के साथ इशरत ओ उसरत हज़ार-हा
वाबस्ता एक तार-ए-नफ़स से हैं तार-हा

कुछ सैद-ज़ख़्म-ख़ुर्दा-ए-जानाँ हमीं नहीं
हर सैद-गह में उस की हैं बिस्मिल शिकार-हा

आया वो जब तो हम न रहे आप में ग़रज़
देखा इसी तरह से उसे हम ने बार-हा

उस गुल के चाक-ए-जेब की हसरत से बाग़ में
हर सुब्ह चाक होती हैं जेब-ओ-कनार-हा

उस सोज़न-ए-मिज़ा के तसव्वुर में शाना-साँ
टूटे हैं एक ख़ल्क़ के पहलू में ख़ार-हा

किस किस की देखिए चमन-ए-सनअ में बहार
अपनी फ़क़त दो चश्म हैं और याँ बहार-हा

थे कल ये ख़त्त-ए-आरिज़-ए-ख़ूबान-ए-सब्ज़ा-रंग
कहते हैं आज ख़ल्क़ जिन्हें सब्ज़ा-ज़ार-हा

थे कल ये शाहिदान-ए-सही सर्व-ओ-सीम-तन
शाहिद हैं आज मर्ग के जिन के मज़ार-हा

सब को 'नज़ीर' सोना है एक दिन ब-ज़ेर-ए-ख़ाक
संग-ए-मज़ार उस के हैं आईना-दार-हा

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